चंडिका स्थान शक्तिपीठ : मां के नेत्र स्वरूप की होती है पूजा ,भक्तों के नेत्र रोग होते है दूर डॉक्टर भी है हैरान !!!

चंडिका स्थान शक्तिपीठ भक्तों के नेत्र रोग होते है दूर डॉक्टर भी है हैरान !!

बिहार के मुंगेर जिला मुख्यालय से महज 2 किलोमीटर दूर स्थित है देश के 52 शक्तिपीठों में एक माँ चण्डिका स्थान । यहां माता सती की बाईं आंख की पूजा होती है । मान्यता है कि जब विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के 52 टुकड़े किए तो उनका बायां नेत्र यहीं गिरा था । इसके साथ ही द्वापर युग में राजा कर्ण और विक्रमादित्य के कथाओं में भी चंडीस्थान का जिक्र है । यहां आंखों के असाध्य रोग से पीड़ित लोग पूजा करने आते हैं और काजल लेकर जाते हैं ।

ऐसी मान्यता है कि यहां का काजल नेत्ररोगियों के विकार दूर करता है । नवरात्र पर मां के नेत्र स्वरूप की पूजा करने से श्रद्धालुओं को मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है। चंडिका स्थान को श्मशान चंडी की भी मान्यता है इसका कारण यह है कि यह गंगा के किनारे स्थित है । इसके पूर्व और पश्चिम में श्मशान अवस्थित है ।  इस कारण नवरात्र के दौरान कई जगहों से साधक तंत्र सिद्धि के लिए भी जमा होते हैं । चंडिका स्थान में नवरात्र के अष्टमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन होता है । इस दिन सबसे अधिक संख्या में भक्तों का यहां जमावड़ा होता है ।

नवरात्र के बाद भी यहां सालों भर देश दुनिया से श्रद्धालु पहुंचते हैं। ऐसे तो बिहार में सहरसा के उग्रतारा और खगड़िया के कात्यायनी स्थान को शक्तिपीठ कहा जाता है। लेकिन, मुंगेर के चंडिका स्थान का महत्व ही अधिक है। मुंगेर के चंडिका स्थान के बारे में यह कहानी मशहूर है कि अंग प्रदेश के राजा कर्ण मां के आशीर्वाद से प्रत्येक दिन गरीबों के बीच सौ मन सोना दान करते थे। राजा कर्ण का कर्ण चौरा आज भी मुंगेर में विद्यमान है। जहां बैठ कर राजा कर्ण प्रत्येक दिन सवा मन सोन दान करते थे। अभी मां के गर्भगृह में धूप और अगरबत्ती के धुएं से तैयार होने वाले काजल लेने के लिए देश के अलग अलग हिस्सों से श्रद्धालु पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं में ऐसी मान्यता है कि यहां का काजल लगाने से लोगों को नेत्र रोग से मुक्ति मिलती है। मां के गर्भगृह में अखंड ज्योति जलती रहती है। इसी ज्योति से काजल तैयार होती है। पंडित कौशल पाठक ने कहा कि मां की ज्योति से तैयार काजल नेत्र की ज्योत बढ़ाती है। वहीं, पुरुष श्रद्धालु अखंड ज्योति, धूप और अगरबत्ती से गर्भगृह की छत पर तैयार होने वाले चंदन को माथे पर लगाते हैं।

इस मंदिर की जुडी अन्य कई पौराणिक दन्त कथाएं भी हैं । कहा जाता है कि राजा दक्ष ने यज्ञ में अपने दामाद शंकर जी को न्योता नहीं दिया जस कारण से उनकी पुत्री क्रोधित हो गई । वो अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ को भंग करने के लिए घर पहुंची । यज्ञ के लिए बने हवन कुंड में कूद कर सती हो गई । जब यह बात भगवान शिव को पता चला तो वो अत्यंत क्रोधित हो गए । सती के शव को अपने कंधों पर उठा कर तांडव नृत्य करने लगे जिससे पूरी पृथ्वी हिलने लगी और चारो तरफ हाहाकार मच गया ।

देवी देवता इस बात से अत्यंत चिंतित हो गए और भगवान ब्रह्मा और विष्णु के पास जाकर विनती करने लगे कि शिव को सती की आशक्ति से दूर करें जिससे भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के 52 टुकड़े कर दिए । जहां-जहा यह टुकड़ा गिरा वहा पर शक्ति पीठ बन गया ।  मुंगेर में माँ का बांया नेत्र गिरा था जस कारण यहाँ नेत्रों की पूजा होती है ।

यहां का मंदिर इतना पुराना है कि इसका कोई प्रामाणिक इतिहास उपलब्ध नहीं होता । चंडिका स्थान एक प्रसिद्ध शक्ति पीठ है  । नवरात्र के दौरान सुबह तीन बजे से माता की पूजा शुरू हो जाती है ।  संध्या में श्रृंगार पूजन होता है । अष्टमी के दिन यहां विशेष पूजा होती है और इस दिन माता का भव्य शृंगार होता है । यहां आने वाले लोगों की सभी मनोकामना पूर्ण होती है ।

मनोकामना पूर्ति के लिए दूर-दूर से आते हैं भक्त

इस सिद्ध शक्तिपीठ की ख्याति दूर-दूर तक फैली है। चंडिका स्थान धार्मिक न्यास समिति के सचिव सागर यादव ने कहा कि नवरात्र के समय में यहां का माहौल पूरी तरह भक्तिमय हो जाता है। नवरात्रा में प्रतिदिन हजारों से अधिक श्रद्धालु यहां जल अर्पण करने पहुंचते हैं। जल अर्पण सुबह 5:00 बजे ही प्रारंभ हो जाता है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए न्यास समिति एवं प्रशासन द्वारा पंक्तिबद्ध पूजा कराई जाती है। उन्होंने कहा कि श्रद्धालुओं के सुरक्षा के लिए यहां पुलिस बल के साथ साथ एनसीसी और एनएसएस के कैडेट भी मौजूद रहते हैं।

कैसे जायें : पटना-भागलपुर रेलखंड पर यह स्थान जमालपुर स्टेशन से दस किमी दूर पड़ता है जहां जमालपुर से ऑटो और अन्य साधन हमेशा उपलब्ध रहते हैं । गंगा पुल होकर बने नए रेलवे लाइन से मुंगेर स्टेशन पर उतरकर वहां से एक किमी की दूरी तय कर मंदिर पहुंचा जा सकता है । मुंगेर सड़क मार्ग से जुड़ा है । मुंगेर बस स्टैंड से मंदिर की दूरी महज दो किलोमीटर है ।

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