बिहार के फरकिया का मां कात्यायनी दरबार : दर्शन मात्र से होती है मनोकामनाएं पूरी

बिहार के फरकिया का मां कात्यायनी दरबार दर्शन मात्र से होती है मनोकामनाएं पूरी

बिहार सांस्कृतिक धरोहरों (Cultural heritage Bihar) का राज्य है। आज इतिहास के पन्नो को पलट कर लाये है आपके लिए 51 शक्तिपीठ में से एक मां कात्यायनी भगवती शक्तिपीठ ।

आज बात करते है 51 शक्तिपीठ में से एक मां कात्यायनी भगवती शक्तिपीठ की , बिहार के सबसे प्राचीन जिलों में से एक खगड़िया है में स्थित है माँ का ये मनोरम स्थान ।

नदियों के बीच सुदूर फरकिया इलाके में बसे मां कात्यायनी के दरबार की महिमा अपार है । मां दुर्गा के छठे रुप में जानी जाने वाली मां कात्यायनी के इस सुप्रसिद्ध मंदिर की ख्याति दूर देश तक है । मूल रुप से खगड़िया जिले के फरकिया इलाके में स्थित धमारा घाट रेलवे स्टेशन के समीप माता रानी विराजमान हैं ।

51 शक्तिपीठ में से एक मां कात्यायनी भगवती की दांयी भूजा आज भी इस मंदिर में मौजूद है । जिसकी पूजा वर्षों बरस से होती आ रही है । नवरात्रा के समय में मंदिर की अलौलिक छंटा नजर आती है । लोग दूध व दही लेकर माता के दरबार में पहुंचते हैं । दूध का अर्पण करने के बाद दही चूड़ा का भोजन खुद भी करते हैं और दूसरों को भी कराने की परंपरा आज भी यहां कायम है।

स्कंद पुराण में मां कात्यायनी मंदिर की चर्चा पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर की चर्चा स्कन्दपुराण में भी की गयी है । इसके अनुसार कालांतर में कात्यायन ऋषि कोसी नदी के तट पर रहते थे , जो प्रत्येक दिन कोसी नदी में स्नान-ध्यान कर मां कात्यायनी की आराधना किया करते थे । उनकी आराधना से प्रसन्न होकर मां भगवती ने दर्शन दिया ।

तब से यह मंदिर मां कात्यायनी मंदिर के रुप में विख्यात हो गया । इस मंदिर में मां भगवती की दांयी भूजा विराजमान है । जिसकी आराधना की अलग परंपरा है । इस मंदिर में देश के विभिन्न भागों के अलावा विदेशों के भी श्रद्धालु मत्था टेकने आते हैं । कहा जाता है कि माता रानी के दरबार में जो भी भक्त सच्चे मन से आराधना करता है । उसकी हर मुराद मां कात्यायनी पूरी करती हैं । सीरपत महाराज ने खोजी थी मां की भूजा कहा जाता है कि कालांतर में इस इलाके में राजा मंगल सिंह का शासन हुआ करता था ।

इसी काल में बीड़ीगमैली निवासी सीरपत महाराज अपने लाखों गाय को लेकर इस इलाके में आये । इसी क्रम में चौथम राज के राजा मंगल सिंह से उनकी मित्रता हुई । जिसके बाद राजा मंगल सिंह ने यह इलाका सीरपत (श्रीपत)महाराज को अपने गायों की देखभाल के लिये दे दिया । गायों की देखभाल के क्रम में सीरपत महाराज ने देखा कि प्रत्येक दिन एक गाय एक निश्चित स्थान पर पहुंचती है तो स्वत: उसके स्तन से दूध निकलने लगता है । धीरे-धीरे यह बात राजा के कानों तक पहुंची ।

राजा ने स्वयं यह दृश्य देखा तो दंग रह गये । स्थल की खुदाई हुई तो वहां मां की दांयी भूजा मिली । जिसे स्थापित कर पूजा अर्चना की जाने लगी । जो आज कल मां कात्यायनी स्थान के नाम से विख्यात है । तब से लेकर अब तक यहां गायों के दूध से मां कात्यायनी की पूजा अर्चना की जाती है । जिसके बाद लोग यहां पर चूड़ा, दही व बताशा का भोग लगा कर ब्राह्मणों व गरीबों को भोजन कराते हैं । यह परंपरा आज भी इस मंदिर में कायम है । भयानक बाढ़ में भी मंदिर की चौखट पार नहीं कर पायी नदियांनदियों से घिरा माता रानी के मंदिर का इलाका बाढ़ग्रस्त है ।

हर साल बाढ़ से यहां के लोग जूझते हैं । लेकिन इसे मां की महिमा कहें या कुछ और भयानक से भयानक बाढ़ में भी नदियों का पानी मां के मंदिर की चौखट पार नहीं कर पाया है । मां कात्यायनी मंदिर न्याय समिति के उपाध्यक्ष युवराज शंभू बताते हैं कि 1987 में आई भीषण बाढ़ में भी एक भी बूंद बाढ़ का पानी माता के मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाया ।

युवराज बताते हैं कि यहां सालों भर प्रत्येक सप्ताह के सोमवार व शुक्रवार को मां कात्यायनी मंदिर में विशेष मेला लगता है । नवरात्र के समय मां के मंदिर में आराधना के लिये देश विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं । 51 शक्तिपीठ में से एक है धमारा घाट स्थित मां कात्यायनी का प्रसिद्ध मंदिर स्कंद पुराण में भी फरकिया के मां कात्यायनी स्थान की है चर्चा पुरातन काल में कात्यायन ऋषि द्वारा कोसी व मां कात्यायनी की आराधना का है जिक्र श्रीपत महाराज ने फरकिया में गाय चराते हुए खोजी थी मां की दांयी भूजा पौराणिक कथा के अनुसार मां की भूजा के समीप गाय के स्तन से स्वत : गिरने लगते थे दूध ।

आज भी कायम है गाय के दूध से मां कात्यायनी की आराधना की परंपरा भयानक बाढ़ में भी आज तक मां के मंदिर की चौखट पार नहीं कर पायी नदियां देश-विदेश मंदिर पहुंच कर मत्था टेकते हैं श्रद्धालु, मुराद पूरी करती है । माता रानी सालों भर प्रत्येक सप्ताह के सोमवार व शुक्रवार को लगता है भव्य मेला ।

समबाहु त्रिभुज में स्थापित हैं तीन देवियां

इस शक्ति पीठ मां कात्यायनी मंदिर से सहरसा जिले के सोनवर्षा प्रखंड के विराटपुर में अवस्थित मां चण्डी देवी एवं महिषी में अवस्थित मां तारा देवी की दूरी एक दूसरे से समान हैं एवं तीनों देवी समबाहु त्रिभुज की तरह तीन बिंदु पर विराजमान हैं । जो बिहार ही नहीं देश में विख्यात हैं ।

दूध चढ़ाने की विशेष परंपरा

दूध की देवी मां कात्यायनी मंदिर में दूध चढ़ाने की विशेष परंपरा है । कोसी इलाके ही नहीं बल्कि उत्तर भारत के पशुपालकों का गाय जब बच्चे देती हैं, तो पहला दूध मां कात्यायनी स्थान मंदिर में चढ़ाया जाता हैं । इस मंदिर की खास विशेषता है कि जो भक्तगण सच्चे मन से जो माता को दूध चढ़ाने के लिए संकल्प लेकर आते हैं । उसका दूध खराब नहीं होता है । प्रत्येक सोमवार एवं शुक्रवार को वैरागन का दिन हैं ।

कहते हैं जानकार

कोसी काॅलेज के प्राचार्य सह हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅक्टर रामपुजन सिंह बताते हैं कि शक्ति पीठ मां कात्यायनी की कृपा इलाके में विख्यात हैं । यह इलाका श्रम शक्ति पर निर्भर है । प्राकृतिक आपदा बाढ़, सुखाड़ के बाद भी इलाके में न तो कभी अकाल की स्थिति उत्पन्न हुई हैं ओर न होगी । यह माता की असीम कृपा हैं । दुर्गम रास्ते के बावजूद भी इलाके के लोग खुशहाल हैं । भक्तजनों का सैलाब उमड़ती रहतीं है । सैकड़ों परिवारों की जीविका इस मंदिर से चल रही हैं ।

कैसे जायें प्रसिद्ध मां कात्यायनी स्थान रेल मार्ग : सहरसा से धमारा घाट रेलवे स्टेशन , दूरी 35 किमी खगडि़या से धमारा घाट रेलवे स्टेशन, दूरी 23 किमी सड़क मार्ग सहरसा से फनगो हॉल्ट, दूरी 45 किमी खगडि़या से कोसी बांध, दूरी 16 किमी दोनों ओर से करीब 5 किमी पैदल चल कर मां के दरबार पहुंचा जा सकता है ।

मंदिर तक जाने के लिए नाव व रेल ही एकमात्र सहारा है |

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